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गले की हड्डी या नेता की फ़जियत

मामला किरन टॉकीज के पीछे चपरा परिवार का अतिक्रमण का
अजय जायसवाल 
शहडोल। किरण टॉकीज के पीछे पौराणिक बावड़ी एवं धार्मिक व सार्वजनिक सरकारी जमीन पर चपरा परिवार द्वारा अवैध अतिक्रमण प्रशासन के लिए गले का हड्डी बन गया है। गले के हड्डी का मतलब सभी जानते हैं ना उगलते बने ना निगलते। तहसीलदार द्वारा चपरा परिवार को कारण बताओं नोटिस भी जारी कर दिया गया और नोटिस जारी होते ही तहसीलदार का तबादला कर देने और पटवारी व राजस्व निरीक्षक को देख लेने की धमकियां दिए जाने का बाजार भी गर्म होने लगा है। यदि अतिक्रंदकारी के दर्द की बात की जाए उसका  दर्द है कि हम सत्ता शासन में हैं तो क्या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण भी नहीं कर सकते और जब हमने कुर्सी संभालते ही अतिक्रमण कर ही लिया तो जिला प्रशासन को हमारा इतना मान सम्मान तो रखना ही चाहिए। जब भू  माफिया तमाम सरकारी और प्राइवेट जमीनों पर कब्जा करके लाखों करोड़ों का धंधा चमका रहे हैं तो क्या हम सत्ता शासन में रहते इतना भी नहीं कर सकते। जिला प्रशासन देखकर भी अनदेखी करता रहता किंतु नागरिकों ने भी गजब कर दिया अनशन शुरू करके। हमने तो सोचा था एक सप्ताह से ज्यादा अनशन नहीं चलेगा पर ये लोग तो पीछे ही पड़ गए।पिछले एक महीने से क्रमिक अनशन चला रहे हैं।इतना ही नहीं प्रजातंत्र का ये चौथा खंबा भी हमारे पीछे लग गया है। हमने इसके पहले क्या कुछ नहीं किया तब तो कोई कुछ नहीं बोला । यही कारण है कि हमने पद मिलते ही अतिक्रमण कर लिया तो आप लोग हाय तोबा मचाने लगे।अरे भाई जब आप को मौका मिले तो आप भी मलाई छान लेना। आप भी खाओ और हमें भी मलाई खाने दो। यह बात अलग है कि हमारे नेता कहते हैं कि न खाऊंगा न खाने दूंगा।पर कौन नेता नहीं खा रहा है आप ही देख लीजिए।अरे भाई साहब हमने तो एक सरकारी जमीन को खाने की तैयारी की थी और आप लोग पीछे पड़ गए यह तो सरासर अन्याय है। प्रशासन के लोगों को तो हम देख लेंगे पर सवाल है कि इन अनशनकारियों का हम क्या करें । जो आंदोलन का सूत्रधार है  उसके पास न तो जमीन है और न ही कोई दो नंबर का काम इसलिए हम चाह कर भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे और बाकी अनशनकारी भी गरीब या ईमानदार हैं तो उनका भी करें तो क्या करें।अब बचे पत्रकार तो ज्यादातर पत्रकार बीपीएल सूची वाले हैं। एक भी पत्रकार हम नेताओं की तरह दो नंबरी नहीं है। तब हमारे सामने समस्या यह है कि हम बदला किससे और कैसे लें। 
  दूसरी तरफ भोपाल और दिल्ली के हमारे पार्टी के नेता कहते है कि हमने तुम्हे अध्यक्ष बना दिया अब तुम खुद निपट लो क्योंकि एक ही काम तो नहीं है पूरा देश और पूरा प्रदेश उन्हें चलाना है। 
 फिर भी मैं इन अधिकारियों को तो देख लूंगी। यदि मुझे खाने नहीं दे रहे हो तो मैं भी इन अधिकारियों को नहीं खाने दूंगी।
     एक  और दर्द मेरा है कि पिछले अध्यक्षों ने क्या-क्या किया है क्या किसी से छुपा है। इतना हाय तौबा तो कभी नहीं हुआ। आखिर मेरे साथ ही क्यों हो रहा है। पिछले अध्यक्षों ने क्या कुछ नहीं खाया सर्व विदित है। हमने तो अभी खाने की तैयारी ही की थी कुछ खा भी नहीं पाए। अरे भाई कार्यकाल तो पूरा हो जाने देते फिर हिसाब कर लेते कि हमने क्या-क्या खाया है।  पद मिलने पर या कुर्सी मिलने पर खाने का अधिकार तो सभी को है । हमारी कुर्सी पर जो भी बैठेगा तो अपना डेरा तो बनाएगा ही बाद में ही जनता की समस्याओं और पार्टी कार्यकर्ताओं  के बारे में सोचेगा। हर आदमी पहले अपना पेट भरता है फिर दूसरे के बारे में सोचता है। यहां की जनता और यहां के पत्रकार हमारी तरक्की में बाधक बन रहे हैं यह तो ठीक नहीं है। हमें ऐसा भी प्रतीत होता है कि इस पूरे मामले में दूसरे तो दूसरे हमारी पार्टी के ही ज्यादातर लोग अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दुश्मन बने हुए हैं और अनशनकारी नागरिक  एवं पत्रकारों को ताकत दे रहे हैं। इतना ही नहीं हमारे बारे में अखबारों में जो छप रहा है उसकी कटिंग हमारे पार्टी के ही लोग दिल्ली और भोपाल भेज रहे हैं। अरे भाई यह काम विपक्षी दल के लोग करें तो समझ में आता है यहां तो विपक्षी दल हमारे खिलाफ कुछ भी नहीं बोल रहा है। यदि विपक्षी चाहते तो हमारे खिलाफ आंदोलन प्रदर्शन भी कर सकते थे परंतु भला हो कांग्रेस का जो अब तक कुछ नहीं की है। अब हमें भी समझ में आ गया है कि रावण की लंका क्यों जल  गई थी। हमारी पार्टी के ही अंदर विभीषण जैसे राम भक्त कार्यकर्ता है जो विपक्षियों का काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर जो कुछ हो रहा है मेरी इज्जत और मेरी प्रतिष्ठा को तार तार करने का इंतजाम है। फिर भी हम तो आखरी दम तक यह लड़ाई लड़ते रहेंगे क्योंकि पद मिला है तो इसका लाभ ले लिया जाए फिर बार-बार यह मौका नहीं मिलेगा। इसलिए चाहे जो कुछ भी हो जाए सरकारी जमीन पर से कब्जा तो हम नहीं हटाएंगे और यदि जिला प्रशासन ने जोर जबरदस्ती किया तो उनके भ्रष्टाचार की कुंडली हम खोल देंगे।

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