*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
सुख--दुख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गांव--। कभी--धूप,कभी छांव,
कभी--धूप , कभी छांव
ऊपर वाला पांसा फेंके
नीचे चलते दांव,
कभी धूप, कभी छांव ।
ये गीत कांग्रेस के लिये नहीं लिखा गया था परन्तु फिल्मी गीतकार कवि प्रदीप की यह रचना आज पंजाब के परिवेश में कांग्रेस के लिये शत-प्रतिशत खरी उतर रही है ।
हाल ही में चंद माह पूर्व जिस गुरू को सिद्धियां देकर दिल्ली से पंजाब भेजा गया था,वह गुरूघंटाल निकला । उसने पहले कैप्टन को उडाया फिर खुद उड गया ।
गुरू क्या उडा,पूरी कांग्रेस का गुड--गोबर कर गया । कलाबाजी ऐसी खेली कि चन्नी के पाले से रजिया भी चली गई । सुल्तानी वयान देते हुये बोली रजिया कि गुरू पंजाब को बचाने की लडाई लड रहे हैं ।
यह सुनकर दिल्ली की दिशा से चलने वाली हवा में राग भैरवी सुनाई देता है कि--: दुश्मन न करे
वो काम दोस्त ने किया है
उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है "।
कैप्टन का भी अपना कहना वाजिब है कि---
"हम से का भूल हुई , जो ये सजा हमको मिली, ।
कुछ भी हो, चांदीपुर में हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल का परीक्षण सफल हुआ और पंजाब में राजनैतिक बिस्फोट शुरू हो गये । सिद्ध पुरूष भला एक जगह टिकते कहां है ? कुर्सी की चाह में कुर्सी ही छोड गये । पंजाब उडाने निकले थे और खुद उड गये ।
कांग्रेस का आत्मघाती प्रयोग और कब तक कहां-कहां होगा ? इसे कोई नहीं बतला सकता ,पर यह साबित हो रहा है कि जंग लगी कांग्रेस की जंग कांग्रेस से ही है ।
तिलस्मी चमत्कारों
से लबरेज कांग्रेस का सिपाही यही सोचता है कि "यदा--यदा ही धर्मस्य, ग्लार्निभवति
भारत,अभ्युत्थान
धर्मस्य तदात्मानम सृजान्य: ।
अर्थात-- कन्हैया आयेंगे , डूबती नैया बचायेंगे ।
-----और आज ही कन्हैया का कांग्रेस में प्रवेश हो गया ।
कविवर सच कहते है कि-- सुख--दुख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गांव--कभी--धूप,कभी छांव ।
गोवा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश,में यही तो देखने को मिला कि
ऊपर वाला पांसा फेंके
नीचे चलते दांव ,
कभी धूप,कभी छांव
1 Comments
सुन्दर वयंग 👍👍
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