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खट्टी मीठी यादें छोड़ गए कलेक्टर सत्येंद्र सिंह

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


 शहडोल  कलेक्टर डॉक्टर सत्येंद्र सिंह का स्थानांतरण उप सचिव मध्यप्रदेश शासन भोपाल के लिए हो चुका है । इसका अनुमान सभी को था । स्वयं कलेक्टर सिंह को भी पूर्वाभास था । प्रशासनिक स्तर पर स्थानांतरण निश्चित ही आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता लेकिन अजीबोगरीब बात तो यह है कि किसी जिले का प्रबंधन संभालने , नवाचार करने  और शासन की नीतियों का

परिणाम सामने लाने के लिये अमूमन तीन वर्ष की कार्यावधि को आदर्श

माना जाता था । सरकार

को बाध्य नहीं किया जा सकता कि फलां अधिकारी को तीन वर्ष ही रखें । सरकार अधिकार पूर्वक कह सकती है कि--" मेरी मर्जी "।

           आकस्मिक स्थितियों में भ्रम भी उत्पन्न होते है कि कहीं कलेक्टर-कमिश्नर के बीच अनबन तो नहीं थी

दूसरा भ्रम उत्पन्न होता है कि कहीं प्रभारी मंत्री से

कोई बात तो नहीं उलझ गई   अथवा सी एम जब जमुई कैम्प में जन सवाल करके (आप लोगों को गल्ला फ्री में मिल रहा है कि नहीं) झेंप गये थे । यही कारण तो नहीं बना , स्थानान्तरण का ?

 अब  कारण   कुछ  भी हो-खैर  ।

  अभी डाॅक्टर साहेब को कुछ और समय तक यहां रूकना था ।

       ऐसी भावना हर कलेक्टर के लिये लोगों के मन में नहीं आती । डाॅ0 सतेन्द्र सिंह के लिये लोगों में अपनापन तब जागा जब देखा कि कोविड-19 के महादानव से कैसे इन्होने दो--दो हांथ किये ?

दिन हो या रात, सुबह हो या शाम । काम और काम । बस !

एक लक्ष्य  "कोई अकारण अपनों से न बिछुडे--।" ऑक्सीजन कहां से अरेंज करना, डाक्टर डरते थे-मरीज के पास खडे नहीं होते थे ।

डीन मिलिन्द साहेब गवाह है कैसे डाक्टरों ने स्वयं की रिपोर्ट लगा कर अवकाश मांगा कि हम काम करने कि स्थिति में नहीं हैं ।डाॅ0 मिलीन्द ने तब मरीजोंकी भारी और गंभीर समस्या देख कर कडा आदेश निकाला था हाला कि बाद में आदेश वापस लेकर उन्होने साॅरी भी प्रगट की ।

हालात  बद  से  बदतर थे ,डिप्टीकलेक्टरों का आज भी टोटा है । शार्ट हैण्ड्स के   बावजूद   एक-एक पी एस सी में पहुंचकर  वहां के स्टाफ को प्रेरित करना दवायें ,ऑक्सीजन,  पहुंचवाना। कर्फ्यू के साथ लायनआर्डर मेनटेन करना , नीतिगत लक्ष्य प्राप्त करना,राजस्व विभागों के राजस्व लक्ष्य प्राप्त करना ।  

  डॉक्टर सत्येंद्र सिंह कोई इस जिले में काम करने के लिए वक्त कम मिला । 

     कोविड-19 का कार्यकाल भरपूर मिला इसके अलावा सामान्य दिनों में काम करने का जब मौका आया तो बरसात सामने आ गई यानी संघर्ष और संघर्ष ।

   पत्रकारों के लिए कक्ष  एलाट करने का वायदा अभी अधूरा है , मुझे विश्वास है कि वह पूरा करके जाएंगे । 

संयुक्त कलेक्ट्रेट भवन का कायाकल्प करा कर  कलेक्टर सत्येंद्र सिंह ने पुलिस प्रशासन के लिए भी एसपी कार्यालय भवन का अतिरिक्त निर्माण का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया इसके लिए जहां से जैसे भी जो मदद लेनी पड़ी बेहिचक कलेक्टर ने सहयोग लेकर महामारी के दौरान अल्प समय में यह सपना साकार किया है  ।

मैंकल, सतपुड़ा और बिंध्य की पर्वत मालाओं से घिरे आदिवासी बाहुल्य  शहडोल जिले का चप्पा चप्पा उन्होंने देखा । साथ ही कुपोषण को दूर करने, महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाने , धान खरीदी के क्षेत्र में लक्ष्य प्राप्त करने वैक्सीनेशन के प्रथम और द्वितीय टीकाकरण अभियान के लक्ष्य मैं शहडोल को अग्रणी पंक्ति में रखने जैसे कार्य उनके मार्गदर्शन में पूरे हुए है


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