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रफूगर

 *आवारा कलम से*

दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार 

शहडोल lसमाज में एक चरित्र होता है जिसे रफूगर के नाम से जानते हैं । दरअसल में यह रफूगर वह कहलाते हैं जो कपड़ों के हल्के फुल्के छिन जाने पर अथवा फट जाने पर उसे धागे से फिर जैसे का तैसा कर देते है । 

             एक राजा अपने ही दरबार में जब मजाकिया बन गया, यानी वह कोई भी बात बोलता तो सभी दरबारी शोर करने लगते और एक समूह में स्वर वद्ध होकर कहते, महाराज यह तो गप्प  है ।

         महाराज दु:खी रहने लगे, उन्हें इस बात का अफसोस रहने लगा कि हम सच भी बोलते हैं तो लोग समझते हैं कि हम  गप्प कह रहे हैं ।

पूरा दरबार हमारी बातों को मजाक समझता है। आगे कैसे काम चलेगा । उन्होंने दरबार में आना कम कर दिया ।

    महामंत्री को शंका हुई वह अंतःपुर में पहुंचे और बोले कि महाराज आजकल आप दरबार नहीं आते ? 

   महाराज ने लंबी सांस लेकर कहा जब पूरा दरबार ही हमारी बातों को हमारी योजनाओं को सिर्फ गप समझता है  और हमें फेकू समझता है तो ऐसे दरबार में आकर हम क्या करें  महामंत्री जी ?  

     तब महामंत्री जी ने कहा शहंशाह अगर बुरा ना माने तो मेरी सलाह है कि किसी रफूगर को रखें वह आपकी बात को दुरुस्त करता जाएगा । मेरी नजर में एक बंदा है आप कहें तो कल उसे दरबार में पेश करूं। महाराज की हामी पाकर महामंत्री ने रफूगर को नियुक्त कर लिया ।

  कुछ दिन बाद दरबार बड़ी आन बान और शान के साथ लगा । महाराज ने आदत के अनुसार अपनी बात रखी और कहा कि भोर के समय छत के ऊपर आज मैंने देखा कि एक चील शाही दरबार का हाथी लेकर उड़ी जा रही थी ।

 सारा दरबार एक स्वर में बोल उठा महाराज यह तो गप्प है, महाराज जी  यह  तो गप्प  है।

महाराज ने तिरछी नजर से दरबार के एक कोने पर देखते हुए कहा  रफूगर---।

महाराज का हुक्म पाकर रफूगर दरबार के सामने झुकते हुए बड़े अदब से बोला --शहंशाह बिल्कुल सही फरमा रहे हैं । इस राज्य का सबसे पुराना हाथी पिछले दिनों मर चुका । चील कौवे उसके शव को खा रहे थे।  एक दिन भोर के समय महाराज ने खुले आसमान में देखा एक चील हाथी की सूड का अंश लेकर जा रही थी जिसमें शाही परिवार का कड़ा था ।  महाराज के मुंह से अचानक निकला ओह! मेरा हाथी ।

  इतना सुनकर दरबार ने अपनी सहमति देते हुये कहा कि हाॅ !  ऐसा हो सकता है ।

राजा बडा प्रशन्न हुआ ।

महामंत्री से बोला आपने तो बड़ा अच्छा काम किया है मेरा मन कह रहा है रफूगर का नाम बदल दो आज से सब कोई इसे  प्रवक्ता  कहेंगे

फिर क्या था यदा-कदा जमने वाला दरबार अब रोज लगने लगा ।

      एक दिन महाराज ने फिर कहा आज मैंने एक बकरी को घुटने के बल बैठकर गर्दन झुका कर खजूर की फूनगी खाते हुए देखा । 

      स्वाभाविक तौर पर पूरा दरबार फिर कहने लगा महाराज यह तो गप्प है।

महाराज ने कहा प्रवक्ता जी संकेत पाकर प्रवक्ता जी बोले महाराज सही फरमा रहे हैं पुराने किले के कुएं में एक खजूर का पेड़ पनपा ऊपर आते आते थोड़ा ही बचा था कि बकरी ने बैठ के उसकी फुनगी खा ली ।

दरबार ने अपनी सहमति दे दी हां हां ऐसा संभव है ऐसा हो सकता है समय बीतता गया महाराज कहते गए प्रवक्ता रफू करते गए अचानक एक दिन महाराज ने कहा सभी के खातों में 15 लाख आएंगे हर साल करोड़ों लोगों को नौकरियां मिलेंगी पूरा दरबार बोला महाराज यह तो गप्प है ।

महाराज ने बड़ी शान से कहा प्रवक्ता जी लेकिन वहां प्रवक्ता जी नहीं थे दूसरे दिन वह दरबार में हाथ जोड़कर खड़े थे और कह रहे थे महाराज मैं अपनी सेवाओं से पृथक होना चाहता हूं महाराज चिंता में पड़े बोले, आपको कोई परेशानी है घर बंगला कार चाहिए महल  चाहिए ।

प्रवक्ता जी बोले नहीं महाराज ऐसी कोई बात नहीं है दरअसल में मेरा मूल पेशा रफूगर का है । कपड़ा यदि थोड़ा बहुत फटे तो मैं रफू कर सकता हूं । मगर आप तो थीगड़े फेंकते हो इसीलिए मैं अपने पद से मुक्त होना चाहता हूं और राजा के लाख समझाने पर भी वह चला गया  ।

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