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आदिवासी चित्रकला के पर्याय अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार आशीष स्वामी का निधन

  नहीं रहे जुधैया बाई और झूलन बाई के कला गुरु आशीष स्वामी ।


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शहडोल  l रविंद्र नाथ टैगोर के शांतिनिकेतन से कला स्नातक अंतरराष्ट्रीय चित्रकार हम सबके अजीज दोस्त आशीष स्वामी जो आदिवासी चित्रकला के पर्याय थे का निधन हम सब के लिए असहनीय हो गया।

अंतराष्ट्रीय चित्रकार  आशीष स्वामी जी ने उमरिया महाविद्यालय से बी.ए. तथा विश्व भारती शांतिनिकेतन से बी फाईन आर्ट्स,जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय दिल्ली से एम फाईन आर्ट्स की शिक्षा प्राप्त की. इन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रदर्शनी में अपनी चित्रकला का प्रदर्शन भी किया तथा आदिवासी बाहुल्य जिला उमरिया में स्तिथ ग्राम लोरहा को अपनी कर्मस्थली बनाया और वहाँ के आदिवासी बैगा जनजाति को चित्रकारी में पारंगत किया जिसमें 80 वर्षीय जुधैया बाई बैगा की चित्रकारी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया ।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त  आदिवासी चित्रकला  के प्रति श्याम जांगिड़  आशीष स्वामी के  एक बेहतर दोस्त रहे आशीष स्वामी के बड़े भाई डॉ एम. एन. स्वामी महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं तथा इनके छोटे भाई देवानंद स्वामी अधिवक्ता हैं। इनकी पुत्री पूर्णा स्वामी स्वतंत्र लेखक ,कोरियोग्राफर हैं.l

मेरा पारिवारिक संबंध रहा  = रघु ठाकुर

 लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक रघु ठाकुर ने कहा है किआशीष स्वामी का निधन मुझे बहुत पीड़ादायक है।  आशीष के सबसे बड़े भाई केशवानंद स्वामी सागर विश्वविद्यालय के छात्र थे ।बाद में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा दिल्ली में पढ़ने के लि ए गए ।वहां उन्होंने छात्रों के साथ होने वाले अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। पर वह इतने भावुक व्यक्ति थे कि जब उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो  उन्होंने आत्महत्या कर ली। स्वामी केआत्म हत्या के सवाल  एन एस डी की गन्दी राजनीती को  78 में मैंने देश के पटल पर बहुत उठाया था और देश के मीडिया में तथा सत्ता तंत्र में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में हो रहे अन्याय और भेदभाव को  उजागर किया था। स्वामी के परिवार के साथ मेरे परिवारिक संबंध रहे। उनके पिता उनकी मां मुझे बहुत स्नेह करते रहे और उनके मृत्यु के बादभी  लगातार  आशीष से और उनके बड़े भाई प्रोफ्  स्वामी से मेरा नियमित और आत्मीय सम्बन्ध बना  रहा ।बल्कि आशीष से कुछ ज्यादा रहा क्योंकि आशीष भी दिल्ली में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में छात्र बनकर पहुंचे और वे नियमित्  मेरे संपर्क में रहते हैं। मेरे सामने आशीष की शादी हुई ।मुझे उसके बचपन के दिन युवा होने केदिन याद है ।और बाद में जब वह अपने घर वापस उमरिया आ गया  तथा उमरिया में रहते हुए भी मेरी कई बार मुलाकात हुई। एक गहरी आत्मीयता आशीष से महसूस करता था और आशीष भी मुझ से।आशीष ने जो  कला का आश्रम बनाया था उस आश्रम में भी मैं गया था ।आशीष ने भारतीय लोकतंत्र के हालात के ऊपर एक पेंटिंग बनाकर मुझे भेंट की थी जो भोपाल लोहिया सदन में आकर दी थी और वह आज भी लोहिया सदन की धरोहर है ।इस पेंटिंग में आशीष ने भारतीय लोकतंत्र की जो हालत है उसको दर्शाया था और किस प्रकार से आम इंसान लोकतंत्र को अपनी पीठ पर ढो रहा है इसका चित्रन किया था। 

उमरिया में से जुड़ाव था  

रघु ठाकुर ने बताया कि कुछ माह पूर्व  मेरे साथ श्री धर्मेंद्रर्श्रीवास्तव श्री मनीष श्रीवास्तव उमरिया के दौरे पर गए थे और वहां से आशीष के उस शिक्षण शिविर  में भी कुछ देर के लिए गए थे जहां पर आदिवासी पेंटिंग का प्रशिक्षण ले रहे थे। महिलाएं पेंटिंग कर रही थी और एक नया अनुभव हम लोग लेकर आए थे ।जब आशीष के निधन का समाचार मुझे मिला तो मैं आश्चर्यचकित भी हूं और मन से व्यथित भी। आशीष मुझे बहुत प्यारा था । उमरिया से आशीष का जुड़ाव था और वह आते जाते रहते थे l

हंसते खेलते चले गए l

 रघु ठाकुर ashish के बारे में बताते हुए  भावुक हो जाते हैं  और कहते हैं मेरे सामने छोटे बच्चे जैसा और उसी प्रकार के उसके भाव होते हैं ।मैं उसके प्रेम की  सम्मान की संवेदनाओं की अनुभूति से वाक़िफ़ था। उसका हँसता चेहरा नित नये प्रयोग को उतावलापन कम बोल कर भी या कभी कभी बगेर बोले केवल हँसकर ही बहुत कुछ बोल जाना भूल नहीं सकता हूँ।बहुत बुरा है एक प्रतिभावान कलाकार एक संवेदनशील कला शिक्षक एक आदिवासियों का मन से समर्थन करने वाला उनके विकास का रास्ता बनाने वाला एक  हंसता खेलता मेरे छोटे भाई का इस प्रकार चले जाना। अब मेरे पास श्रद्धांजलि देने के अलावा   कुछ शेष नहीं बचा।आशीष तुम्हें मेरे आशीष जहाँ भी हो खुश रहो। 



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