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फिर आना मुख्यमंत्री जी

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


 शहडोल lआदरणीय मुख्यमंत्री जी यह आपका अत्यंत प्रिय जिला है । आपने इसे गोद लिया है । आप जब चाहें तब आ सकते हैं- जा सकते हैं । कोई पाबंदी नहीं है ।

बस ! एक गुजारिश यह कर रहा था कि जब संक्रमण इस हद तक फैला हो कि आप किसी को हेलीपैड ना आने दें, आप पत्रकारों से मिलना उचित न समझें, आप विपक्षी दलों की बात न सुनें, आप आम आदमी की पीड़ा को अस्पतालों में जाकर महसूस न करें, आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था को अपनी आंखों से ना देखें,

 तो 

आपको अभी नहीं आना चाहिए था ।

क्योंकि आपका जीवन बहुत कीमती है । हम लोग तो भाजी--मूली है पर आप कीमती हीरा जवाहरात है ।

महोदय,

 अधिकारियों से तो आप वर्चुअल मीटिंग भी कर सकते थे, फिर शासन का यह कीमती पैसा उड़न खटोले में जाया नहीं करना था , लेकिन आप प्रदेश के मुखिया हैं यह स्वतंत्रता आपको है और आप पर सवाल उठाना गैर लाजमी है। आपने एक महत्वपूर्ण सलाह दी है कि कोविड-19 मिलकर लड़ाई लड़ी जाती है आम जनता इस में सहयोग दे, आपको सहयोग मिल रहा है 

प्रभु 

सारे बाजार बंद है प्रशासन लोगों को आगे से समझा रहा है और पुलिस लोगों को पीछे से समझा रही है ।बसें-- ट्रेनें बंद है ,शादी विवाह बंद है ,और जो सहयोग चाहिए जनता देने को तैयार है ।

बस ! एक सहयोग आपसे चाहती है ध्यान दीजिए ।आप प्रदेश के मुखिया हैं । दमोह चुनाव के बाद पेट्रोल डीजल जो आसमान पर उड़ने लगा उसे जरा धरती पर लाइए ना - बड़ी कृपा होगी आपकी ।

 गाड़ियों में तेल नहीं जल रहा खून जल रहा है  प्रभु 

इस में आपका सहयोग चाहिए ,वरना कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस होगा *महंगाई* लोग घरों के अंदर ही अपनी जीवन लीला समाप्त करने लगेंगे । बेरोजगार बैठे लड़के से बीमार बाप क्या संवाद करता होगा आपको मालूम ?

नहीं मालूम होगा ।

क्योंकि पैसे की कमी तनाव भी बढ़ा देती है और इम्यूनिटी भी डाउन कर देती और ऐसी यूनिटी को दुनिया की कोई दवाई बढ़ा नहीं सकती ।

प्रभु दया करिए अस्पतालों में जीवन रक्षक अधिकारी दवाइयों की कालाबाजारी करने लगे तो आपकी यह जनता जनार्दन किससे जीवन की आशा रखे ?

 प्रभु-- प्रभु हमारे नगर में आप जल्द आए और जल्द चले गए यहां के नजारे अगर देखते तो हम सब कुछ सुधार की आशा रखते एक बात आपसे और समझनी थी कि यह मीडिया कौन सी घंटी में लगा बूंदा है जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है और जब कार्यपालिका का बस चलता है तब इसका उपयोग कर लेता है और फिर उससे मिलना क्या इसे देखना भी पसंद नहीं करता ?

ऐसा क्यों प्रभु ?

मीडिया कर्मी जान की बाजी लगाकर लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित करते हैं अपने घर वालों को छोड़कर लोगों की परेशानियों को प्रशासन की नजर में लाते हैं अपने माता-पिता की इतनी तरफदारी नहीं करते जितनी प्रशासन का गुणगान करने में अपनी ताकत लगा देते हैं लेकिन प्रभु इन्हें दिमागदार नहीं समझा जाता बैठकों में इन्हें नहीं बुलाया जाता मीडिया कर्मियों से सलाह मशविरा नहीं की जाती इतनी उपेक्षा आपके राज्य में क्या उचित है ?

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