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शेर को सवा शेर मिल गया

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

      दादा ओsss  दादा

 खेला होवे छे।भालो छे, 


 बंगाल मां जनता कोनी हारी, हारो छे, अहंकार, पैसा ,बाहुबली और  रूतवा हारो छे ।

     टीवी का गुणा-- भाग और पैसे की भीड़ 

धोखा दे गई । 

दादा ओss दादा !

आप की सभा में तो जहां तक नजर जाती थी वहां तक भक्त ही भक्त बैठे दिखाई देते थे । कई बार तो धोखा हुआ कि पूरा बंगाल आपको सुनने आ गया ।

अब पता चला कि वो आए नहीं थे---- लाए गए थे ।  जो जहां से आए थे---वहां चले गए । ओ दादा ! विभीषणों का क्या होगा ?

     बंगाल में शेर को सवा शेर मिल गया । कोई साल भर से डेरा डाला था , कोई 4 महीने से डेरा डाला था, कोई विमान से उड़कर जाता और आता था, सब के सब उड़ गए    ।            2 मई-------- फेकू की बातें गई ।

जानादेश प्रमाण पत्र हैं कि पश्चिम बंगाल में जनता के साथ किसने दूरियां बनाई--- किसने नजदीकियां बनाई । किसने बंगाल बर्बाद किया-- किस ने बंगाल बचाया । फैसला सामने है ।

एक शेरनी को घेर कर राजनीति के धुरंधरों ने किस तरह महाभारत रची थी लेकिन सामने द्रोपती नहीं ममता बनर्जी खड़ी थी बंगालियों की दीदी खड़ी थी जिसने एक-एक महारथियों को धूल चटा दी और तीसरी बार बंगाल की कमान संभाली ।  इस चुनाव ने साबित कर दिया कि दलगत नेता बिकाऊ हो सकता है । जनता जनार्दन को खरीदना बहुत मुश्किल है उस पर पैसे का जादू नहीं चलता दादा ओ दादा 

खेला होवे छे !

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