*आवारा कलम से*
दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल lइस लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिक चीख-- चीख कर सरकार से कह रही हैं की देश के किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं होना चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग पर कड़ी टिप्पणी की । इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन के लिए अपने शख्त तेवर दिखलाए । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी देते हुए सरकार से कहा क्यों ना आपके ऊपर नरसंहार करने का आरोप लगाया जाए ।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कोविड-19 से निपटने के लिए क्या प्लान बनाया गया है उसकी मांग की ।
यानी देश के भीतर हर बड़ी अदालतें सरकार पर सवालिया निशान लगा रही हैं , और सरकार अपने वकीलों को भेजकर इधर उधर की दलीलें पेश कर रही हैं । इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कल ही कहा है कि मौजूदा हालातों से हम आंख बंद नहीं कर सकते,जब हम कोई बहाना नहीं सुनेंगे और कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2 बड़े अफसरों को तलब किया है ।
आश्चर्य है कि अदालतों के द्वारा इतनी सख्ती के बावजूद केंद्र सरकार हरकत में नहीं आ रही है दिल्ली के अंदर ऑक्सीजन के अभाव को आज कहीं अगर पूरा किया गया तो दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर किया गया । ना की एक निर्वाचित जनतांत्रिक सरकार की मांग पर पूरा किया गया ।
देश के अंदर संवैधानिक संस्थाओं के बीच यह टकराव और मतभेद स्वस्थ प्रक्रिया के लिए लाभप्रद नहीं है।
देश के भीतर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जाने पहचाने जाने वाले कुछ पत्रकारों ने पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान सर्वेक्षण की आंधी चलाकर जो दावे प्रति दावे पेश किए थे परिणाम आने के बाद सब के सब धराशाई हो गए । यहां तक कि यही मीडिया पश्चिम बंगाल के शरारती तत्वों के कृत्य को जितना उछाल रहा है उसमें से एक अंश भी स्थान बुलंदशहर में हुई 18 मौतों को नहीं मिला ऐसे पक्षपातपूर्ण कार्यों से जनहित का नुकसान होता है । आस्थाओं पर चोट पहुंचती है और विश्वास टूटता है ।आज कोविड-19 की महामारी खुलकर तांडव कर रही है और भीतरी तौर पर ऐसा अविश्वास भरा माहौल बनता जा रहा है जो शुभ संकेत नहीं दे रहा है ।
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